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उमर

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उमर इब्न अल-खत्ताब
सत्य और असत्य में फर्क करने वाला (अल-फारूक); अमीरुल मूमिनीन [1]
राशिदून खलीफा में से एक खलीफा
शासनावधि23 अगस्त 634  ई – 3 नवंबर 644  ई
पूर्ववर्तीअबु बकर
उत्तरवर्तीउस्मान बिन अफ्फान
जन्मc. 583 CE
मक्का, हिजाज़, सउदी अरब
निधन3 नवंबर 644 CE (26 Dhul-Hijjah 23 AH)[2]
मदीना, अरेबिया, राशिदून साम्राज्य
समाधि
जीवनसंगी
  • जैनब बिंत मजून
  • कुरैबा बिंत अबी उमय्या अल मख्जूमी
  • उम्म हकीम बिंत अल-हारिस इब्न हिशाम
  • आतिका बिंत जैद इब्न अम्र इब्न नुफैल
संतान
  • अब्दुल्ला इब्न उमर
  • अब्दुर्रहमान इब्न उमर
  • उबैदुल्ला इब्न उमर
  • जैद इब्न उमर
  • आसिम इब्न उमर
  • इयाद इब्न उमर
  • हफ्सा बिंत उमर
  • फातिमा बिंत उमर
  • जैनब बिंत उमर
पूरा नाम
उमर इब्न अल-खत्ताब अरबी: عمر بن الخطاب
पिताखत्ताब इब्न नुफैल
माताहंतमा बिंते हिशाम

हजरत उमर इब्न अल-खत्ताब (अरबी में عمر بن الخطّاب), ई. (586–590 – 644) हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्रमुख चार सहाबा (साथियों) में से थे। वो हजरत अबु बक्र के बाद मुसलमानों के दूसरे खलीफा चुने गये। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अनुयाईयों में इनका नाम हजरत अबु बक्र के बाद आता है। उमर खुलफा-ए-राशीदीन में दूसरे खलीफा चुने गए। उमर को अरब से बाहर इस्लामी साम्राज्य के विस्तार में अहम भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है।

प्रारंभ में, उमर ने मुहम्मद का विरोध किया था, जो उनके दूर के कुरैशी कबीले के सदस्य और बाद में उनके दामाद बने। हालाँकि, 616 में इस्लाम स्वीकार करने के बाद, उमर पहले मुसलमान बने जिन्होंने खुले तौर पर काबा में नमाज़ अदा की। उन्होंने मुहम्मद के तहत लगभग सभी लड़ाइयों और अभियानों में भाग लिया। मुहम्मद ने उनकी बुद्धिमत्ता के लिए उन्हें "अल-फारूक" (सत्य और असत्य में अंतर करने वाला) की उपाधि दी। जून 632 में मुहम्मद की मृत्यु के बाद, उमर ने पहले खलीफा अबू बक्र के प्रति निष्ठा की शपथ ली और उनके मुख्य सलाहकार बने। अगस्त 634 में, अबू बक्र ने अपनी मृत्यु से पहले उमर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

उमर के शासनकाल में, इस्लामी खिलाफत ने अभूतपूर्व विस्तार किया। सासानी साम्राज्य (फारस) को जीत लिया गया और बीजान्टिन साम्राज्य (रोमन साम्राज्य) का दो-तिहाई हिस्सा भी मुस्लिम सेनाओं के अधीन आ गया। सासानी साम्राज्य के खिलाफ उनकी सैन्य कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप 642–644 के भीतर ही पूरा फारस जीत लिया गया। यहूदी परंपरा के अनुसार, उमर ने ईसाइयों द्वारा यहूदियों पर लगाए गए प्रतिबंध हटा दिए और उन्हें यरूशलम में प्रवेश व पूजा की अनुमति दी। 644 में, एक फारसी गुलाम अबू लुलुआ फिरोज ने उमर की हत्या कर दी।

इतिहासकारों द्वारा उमर को सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली मुस्लिम खलीफाओं में से एक माना जाता है। सुन्नी इस्लामी परंपरा में, उन्हें एक न्यायप्रिय शासक और इस्लामी गुणों का आदर्श माना जाता है। कुछ हदीसों में उन्हें अबू बक्र के बाद दूसरे सर्वश्रेष्ठ सहाबा (पैगंबर मुहम्मद के साथी) के रूप में वर्णित किया गया है। हालाँकि, शिया इस्लाम (विशेषकर बारहवीं शिया) की परंपरा में उन्हें नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है।[3]

प्रारंभिक जीवन

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हजरत उमर का जन्म मक्का में हुआ था। ये कुरैश खानदान से थे।[4] अशिक्षा के दिनों में भी लिखना पढ़ना सीख लिया था, जो कि उस जमाने में अरब लोग लिखना पढ़ना बेकार का काम समझते थे।[5] इनका कद बहुत ऊँचा, रौबदार चेहरा और गठीला शरीर था। उमर मक्का के मशहूर पहलवानों में से एक थे, जिनका पूरे मक्का में बड़ा दबदबा था। उमर सालाना पहलवानी के मुकाबलों में हिस्सा लेते थे।[5] आरंभ में हजरत उमर इस्लाम के कट्टर शत्रु थे। और मुहम्मद साहब को जान से मारना चाहते थे। उमर शुरू में बुत परस्ती करते थे। तथा बाद में इस्लाम ग्रहण करने के बाद बुतो को तोड़ दिया, और अपना संपुर्ण जीवन इस्लाम धर्म के लिए न्योछावर कर दिया।

इस्लाम कबूल करना

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उमर मक्का में एक काफ़िर परिवार से था! उमर मुसलमानों और मुहम्मद साहब का विरोध कर्ता था। उमर एक बार पैगंबर मुहम्मद के कत्ल के इरादे से निकला था, रास्ते में नईम नाम का एक शख्स मिला जिसने उमर को बताया कि उनकी बहन तथा उनके पति इस्लाम स्वीकार कर चुके हैं। उमर गुस्से में आकर बहन के घर चल दिये। वह दोनों घर पर कुरआन पढ़ रहे थे। उमर उनसे कुरआन माँगने लगे मगर उन्होंने मना कर दिया। उमर क्रोधित होकर उन दोनों को मारने लगे।

उनकी बहन ने कहा हम मर जाएँगे लेकिन इस्लाम नहीं छोड़ेंगे। बहन के चेहरे से खून टपकता देखकर हजरत उमर को शर्म आयी तथा गलती का अहसास हुआ। कहा कि मैं कुरआन पढ़ना चाहता हूँ, इसको अपमानित नहीं करूंगा वादा किया। जब उमर ने कुरआन पढ़ा तो बोले यकीनन ये ईश्वर की वाणी है किसी मनुष्य की रचना नहीं हो सकती। एक चमत्कार की तरह से उमर कुरआन के सत्य को ग्रहण कर लिया तथा मुहम्मद साहब से मिलने गये। मुहम्मद साहब और बाकी मुसलमानों को बहुत प्रसन्नता हुई उमर के इस्लाम स्वीकार करने पर। हजरत उमर ने एलान किया कि अब सब मिलके नमाज काबे में पढ़ेंगे जो कि पहले कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। हजरत उमर को इस्लाम में देखकर मुहम्म्द साहब के शत्रुओं में कोहराम मच गया। अब इस्लाम को उमर नाम की एक तेज तलवार मिल गई थी जिससे सारा मक्का थर्राता था।

मदीने की हिजरत (प्रवास)

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622 ईस्वी में, यथ्रिब (मदीना अल-मुनव्वरा का अर्थ है "रोशन शहर") में मिलने वाली सुरक्षा के कारण, मुहम्मद ने अपने अनुयायियों को मदीना हिजरत करने का आदेश दिया। अधिकांश मुस्लिम क़ुरैश के प्रतिरोध के डर से रात में हिजरत कर गए, लेकिन उमर के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने दिन के उजाले में खुलेआम प्रस्थान किया और कहा:

"जो कोई चाहता है कि उसकी पत्नी विधवा हो जाए और उसके बच्चे अनाथ हो जाएं, वह मुझसे उस पहाड़ी के पीछे आकर मिले।"

उमर मदीना की ओर अपने चचेरे भाई और बहनोई सईद बिन ज़ैद के साथ हिजरत कर गए।[6]

मदीने की जिंदगी

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हजरत उमर की तलवार

मदीना इस्लाम का एक नया केंद्र बन चुका था। सन हिजरी इस्लामी पंचांग का निर्माण किया जो इस्लाम का पंचांग कहलाता है। 624 ई. में मुसलमानों को बद्र की जंग लड़ना पड़ा जिसमें हजरत उमर ने भी मुख्य किरदार निभाया। बद्र की जंग में मुसलमानों की जीत हुई तथा मक्का के मुशरिकों की हार हुई। बद्र की जंग के एक साल बाद मक्का वाले एकजुट हो कर मदीने पे हमला करने आ गए, जंग उहुद नामक पहाड़ी के पास हुई।

जंग के शुरू में मुस्लिम सेना भारी पड़ी लेकिन कुछ कारणों वश मुस्लिमों की हार हुई। कुछ लोगों ने अफवाह उड़ा दी कि मुहम्मद साहब शहीद कर दिये गये तो बहुत से मुस्लिम घबरा गए, उमर ने भी तलवार फेंक दी तथा कहने लगे अब जीना बेकार है। कुछ देर बाद पता चला की ये एक अफवाह है तो दुबारा खड़े हुए। इसके बाद खंदक की जंग में साथ-साथ रहे। उमर ने मुस्लिम सेना का नेतृत्व किया अंत में मक्का भी जीता गया। इसके बाद भी कई जंगों का सामना करना पड़ा, उमर ने उन सभी जंगो में नेतृत्व किया।

पैगंबर मुहम्म्द की वफात के बाद

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8 जून सन 632 को पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु हो गयी। उमर तथा कुछ लोग ये विश्वास ही नहीं रखते थे कि मुहम्मद साहब की मुत्यु भी हो सकती है। ये खबर सुनकर उमर अपने होश खो बैठे, अपनी तलवार निकाल ली तथा जोर-जोर से कहने लगे कि जिसने कहा कि नबी की मौत हो गई है मैं उसका सर तन से अलग कर दूंगा। इस नाजुक मौके पर तभी अबु बक्र ने कुरान से ये आयतें पढ़ीं बहुत मशहूर है:

"जो भी कोई मुहम्मद की इबादत करता था वो जान ले कि वह वफात पा चुके हैं, तथा जो अल्लाह की इबादत करता है ये जान ले कि अल्लाह हमेशा से जिंदा है, कभी मरने वाला नहीं"

फिर कुरआन की आयत पढ़ कर सुनाई:

"मुहम्मद नहीं है सिवाय एक रसूल के, उनसे पहले भी कई रसूल आये। अगर उनकी वफात हो जाये या शहीद हो जाएँ तो क्या तुम एहड़ियों के बल पलट जाओगे?"

अबु बक्र से सुनकर तमाम लोग गश खाकर गिर गये, उमर भी अपने घुटनों के बल गिर गये तथा इस बहुत बड़े दु:ख को स्वीकार कर लिया।

खिलाफत की स्थापना

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8 जून 632 को पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के बाद उमर इब्न अल-खत्ताब की राजनीतिक क्षमता पहली बार खिलाफत के निर्माता के रूप में सामने आई। जब मुहम्मद का अंतिम संस्कार चल रहा था, तब मदीना के निवासी मुहम्मद के अनुयायियों (अंसार) ने शहर के बाहर एक सभा का आयोजन किया, जिसमें मुहाजिरीन (प्रवासी साथियों) को शामिल नहीं किया गया। इनमें उमर भी शामिल थे।

उमर को सकीफा बनी सादा में हो रही इस बैठक के बारे में पता चला और वे अबू बक्र तथा अबू उबैदा इब्न अल-जर्राह को साथ लेकर वहाँ पहुँचे। उनका उद्देश्य अंसार द्वारा राजनीतिक अलगाव की योजना को रोकना था। बैठक में पहुँचने पर उमर को अंसार के एकजुट समुदाय का सामना करना पड़ा, जो मुहाजिरीन के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे।

हालाँकि, उमर अपने विश्वास पर अडिग रहे कि खिलाफत पर मुहाजिरीन का नियंत्रण होना चाहिए। खजरज जनजाति के विरोध के बावजूद, उमर ने एक-दो दिनों तक चले तनावपूर्ण वार्तालाप के बाद अंसार को उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी गुटों—बनू औस और खजरज—में विभाजित कर दिया।

उमर ने सकीफा में एकत्र लोगों के लिए अबू बक्र को एकता के प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत करते हुए अपना हाथ उनके हाथ पर रखकर मतभेदों को सुलझा लिया। सकीफा में मौजूद अन्य लोगों ने भी ऐसा ही किया, सिवाय खजरज जनजाति और उनके नेता सअद इब्न उबादा के, जिन्हें इसके परिणामस्वरूप अलग-थलग कर दिया गया।

ऐसा कहा जाता है कि खजरज जनजाति ने कोई महत्वपूर्ण खतरा पैदा नहीं किया, क्योंकि मदीना की अन्य जनजातियों (जैसे बनू औस) के पास पर्याप्त योद्धा थे, जिन्हें तुरंत अबू बक्र के लिए एक सैन्य अंगरक्षक के रूप में संगठित किया गया।[7]


एक खलीफा के रूप में नियुक्ति

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जब अबु बक्र को लगा कि उनका अंत समय नजदीक है तो उन्होंने अगले खलीफा के लिए उमर को चुना। उमर उनकी असाधारण इच्छा शक्ति, बुद्धि, राजनीतिक, निष्पक्षता, न्याय और गरीबों और वंचितों लोगों के लिए देखभाल के लिए अच्छी तरह से जाने जाते थे। हजरत अबु बक्र को पूरी तरह से उमर की शक्ति और उनको सफल होने की क्षमता के बारे में पता था। उमर का उत्तराधिकारी के रूप में दूसरों के किसी भी रूप में परेशानी नहीं था। अबु बक्र ने अपनी मृत्यु के पहले ही हजरत उस्मान को अपनी वसीयत लिखवाई कि उमर उनके उत्तराधिकारी होंगे। अगस्त सन 634 ई में हजरत अबु बक्र की मृत्यू हो गई। उमर अब खलीफा हो गये तथा एक नये दौर की शुरुवात हुई।

प्रारंभिक चुनौतियाँ

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भले ही लगभग सभी मुसलमानों ने हजरत उमर र. अ. के प्रति अपनी वफादारी की प्रतिज्ञा दी थी, लेकिन उन्हें प्यार से ज्यादा डर था। मुहम्मद हुसैन हयाकल के अनुसार, उमर के लिए पहली चुनौती अपने विषयों और मजलिस अल शूरा के सदस्यों पर जीत हासिल करना था।

हजरत उमर र. अ. एक उपहार देने वाले व्यक्ति थे, और उन्होंने लोगों के बीच अपनी प्रतिष्ठा को सुधारने की अपनी क्षमता का इस्तेमाल किया।

मुहम्मद हुसैन हयाकल ने लिखा कि उमर र. अ. का तनाव गरीबों और वंचितों की भलाई पर था। इसके अलावा, उमर र. अ. बानू हाशिम के साथ अपनी प्रतिष्ठा और संबंध को बेहतर बनाने के लिए, अली र. अ. की जनजाति, खैबर में अपने विवादित संपदा को बाद में पहुँचाया। उन्होंने अबू बक्र सिद्दिक र. अ. के फिदक की विवादित भूमि पर फैसले का पालन किया, इसे राज्य संपत्ति के रूप में जारी रखा। रिद्दा युद्धों में, विद्रोहियों और धर्मत्यागी जनजातियों के हजारों कैदियों को अभियानों के दौरान दास के रूप में ले जाया गया था। हजरत उमर र. अ. ने कैदियों के लिए एक सामान्य माफी, और उनकी तत्काल मुक्ति का आदेश दिया। इसने उमर को बेदौइन जनजातियों के बीच काफी लोकप्रिय बना दिया। अपनी ओर से आवश्यक सार्वजनिक समर्थन के साथ, हजरत उमर र. अ. ने रोमन मोर्चे पर सर्वोच्च कमान से खालिद इब्न वालिद को वापस बुलाने का साहसिक निर्णय लिया।

उमर का राजनीतिक एवं प्रशासनिक तंत्र

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उमर का शासन एक एकीकृत शासन प्रणाली थी, जहाँ सर्वोच्च राजनीतिक अधिकार ख़लीफ़ा के पास था। उनके साम्राज्य को कई प्रांतों और कुछ स्वायत्त क्षेत्रों (जैसे अज़रबैजान और आर्मेनिया) में विभाजित किया गया था, जिन्होंने खिलाफत की सर्वोच्चता स्वीकार कर ली थी।

  • प्रांतीय प्रशासन

प्रांतों का प्रबंधन वाली (गवर्नर) द्वारा किया जाता था, जिन्हें उमर स्वयं सावधानीपूर्वक चुनते थे। प्रांतों को लगभग 100 जिलों में बाँटा गया था। प्रत्येक जिले या प्रमुख शहर पर एक अमीर (जूनियर गवर्नर) की नियुक्ति की जाती थी, जिसे आमतौर पर उमर स्वयं चुनते थे, लेकिन कभी-कभी प्रांतीय गवर्नर भी नियुक्त करते थे।

  • प्रांतीय अधिकारी

कातिब – मुख्य सचिव कातिब-उद-दीवान – सैन्य सचिव साहिब-उल-ख़राज – राजस्व संग्रहकर्ता साहिब-उल-अहदथ – पुलिस प्रमुख साहिब-बैत-उल-माल – राजकोष अधिकारी क़ाज़ी – मुख्य न्यायाधीश कुछ जिलों में अलग से सैन्य अधिकारी होते थे, हालाँकि ज्यादातर मामलों में वाली ही प्रांत में तैनात सेना का सेनापति होता था।

  • नियुक्ति प्रक्रिया

हर नियुक्ति लिखित आदेश के तहत की जाती थी। नियुक्ति के समय निर्देश पत्र जारी किया जाता था, जिसमें वाली के आचरण के नियम दिए होते थे। पदभार ग्रहण करते समय वाली को मुख्य मस्जिद में लोगों को इकट्ठा करके निर्देश पत्र पढ़कर सुनाना होता था।

  • उमर के अधिकारियों के लिए निर्देश

उमर ने अपने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए: "याद रखो, मैंने तुम्हें लोगों पर हुक्मरान या ज़ालिम बनने के लिए नहीं भेजा है। मैंने तुम्हें नेता बनाकर भेजा है ताकि लोग तुम्हारा अनुसरण करें। मुसलमानों को उनके अधिकार दो और उन्हें मत मारो, नहीं तो वे अपमानित होंगे। उनकी अत्यधिक प्रशंसा मत करो, वरना वे अहंकारी हो जाएँगे। उनके सामने अपने दरवाज़े बंद मत रखो, नहीं तो ताकतवर लोग कमज़ोरों को खा जाएँगे। और ऐसा व्यवहार मत करो कि तुम उनसे श्रेष्ठ हो, क्योंकि यह उन पर ज़ुल्म होगा।"

  • अधिकारियों के लिए अन्य नियम

प्रमुख अधिकारियों को हज के अवसर पर मक्का जाना होता था, जहाँ लोग उनके खिलाफ शिकायतें पेश कर सकते थे। भ्रष्टाचार रोकने के लिए उमर ने अधिकारियों को उच्च वेतन दिया। प्रांतीय गवर्नर प्रतिवर्ष 5,000 से 7,000 दिरहम वेतन पाते थे, साथ ही युद्ध लूट में हिस्सा भी (अगर वे सेनापति भी होते)।

उमर के अधीन प्रांत मक्का (अरब) मदीना (अरब) बसरा (इराक) कूफ़ा (इराक) जज़ीरा (टिग्रिस-यूफ्रेट्स का ऊपरी क्षेत्र) सीरिया इलिया (फिलिस्तीन) रमला (फिलिस्तीन) ऊपरी मिस्र निचला मिस्र खुरासान (फारस) अज़रबैजान (फारस)

  • शिकायत निवारण प्रणाली

उमर ने राज्य अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जाँच के लिए एक विशेष विभाग स्थापित किया, जो प्रशासनिक न्यायालय के रूप में कार्य करता था। यहाँ कानूनी कार्यवाही स्वयं उमर की देखरेख में होती थी। इस विभाग का प्रमुख मुहम्मद इब्न मसलमा था, जो उमर के विश्वासपात्रों में से एक था। महत्वपूर्ण मामलों में मुहम्मद इब्न मसलमा को जाँच के लिए भेजा जाता था। कभी-कभी जाँच आयोग गठित किया जाता था। शिकायत मिलने पर अधिकारियों को मदीना बुलाकर उमर की अदालत में पेश किया जाता था।

  • गुप्तचर सेवा एवं जवाबदेही

उमर ने एक गुप्तचर सेवा विकसित की, जिसके जरिए वे अपने अधिकारियों को जवाबदेह ठहराते थे। यह सेवा लोगों में डर का माहौल भी बनाए रखती थी।

  • उमर के नवाचार

पहली बार सार्वजनिक मंत्रालय प्रणाली शुरू की, जहाँ अधिकारियों और सैनिकों के रिकॉर्ड रखे जाते थे।

पहली बार पुलिस बल की स्थापना की गई, जो नागरिक व्यवस्था बनाए रखती थी। अनुशासनहीन लोगों को दंडित करने की प्रथा शुरू की।

  • व्यापार पर प्रतिबंध

उमर ने अपने गवर्नरों और अधिकारियों को किसी भी प्रकार के व्यापार में शामिल होने से मना किया। एक बार उनके एक अधिकारी अल-हारिस इब्न काब के पास उसके वेतन से अधिक धन पाया गया। जब उमर ने पूछा, तो उसने कहा कि उसने व्यापार किया था। उमर ने कहा:

"अल्लाह की कसम! हमने तुम्हें व्यापार करने के लिए नहीं भेजा था!"

और उन्होंने उससे उसका मुनाफ़ा जब्त कर लिया।

[8][9]

637 में यरुशलम की यात्रा

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उमर की यरुशलम यात्रा का उल्लेख कई स्रोतों में मिलता है। हाल ही में खोजे गए एक यहूदी-अरबी पाठ में निम्नलिखित घटना का वर्णन मिलता है: "उमर ने गैर-मुस्लिमों और यहूदियों के एक समूह को मंदिर परिसर (टेंपल माउंट) की सफाई का आदेश दिया। उमर स्वयं इस कार्य की निगरानी कर रहे थे। वहां आए यहूदियों ने फिलिस्तीन के शेष यहूदियों को पत्र भेजकर सूचित किया कि उमर ने यरुशलम में यहूदियों के पुनर्वास की अनुमति दे दी है। कुछ विचार-विमर्श के बाद, उमर ने सत्तर यहूदी परिवारों को वापस लौटने की अनुमति दी। वे शहर के दक्षिणी भाग (यानी 'यहूदियों का बाज़ार') में बस गए। (उनका उद्देश्य सिलवान के पानी और मंदिर परिसर तथा उसके द्वारों के निकट रहना था)। फिर कमांडर उमर ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। सत्तर परिवार तिबेरियास और उसके आसपास के क्षेत्र से अपने पत्नि और बच्चों के साथ यरुशलम आकर बस गए।"

  • बिशप यूटाइकियस का विवरण

अलेक्जेंड्रिया के बिशप यूटाइकियस (932–940) के नाम से यह भी उल्लेख मिलता है कि टेंपल माउंट के रूप में जाना जाने वाला स्थान कॉन्स्टेंटाइन द ग्रेट की माँ एम्प्रेस हेलेना के समय से ही खंडहर बना हुआ था, जिन्होंने यरुशलम में गिरजाघर बनवाए थे। उन्होंने कहा: "बाइज़ेंटाइन लोगों ने जानबूझकर प्राचीन मंदिर स्थल को वैसा ही छोड़ दिया था और उस पर कचरा भी फेंक दिया था, जिससे मलबे का एक बड़ा ढेर बन गया था।" काब अल-अहबार का सुझाव जब उमर सेना के साथ यरुशलम पहुंचे, तो उन्होंने काब अल-अहबार (जो इस्लाम कबूल करने से पहले यहूदी थे) से पूछा: "तुम मुझे कहाँ इबादतगाह बनाने की सलाह दोगे?" काब ने टेंपल रॉक (जो उस समय जुपिटर के मंदिर के खंडहरों का ढेर था) की ओर इशारा किया। काब ने समझाया कि लगभग पच्चीस साल पहले यहूदियों ने अपनी पुरानी राजधानी पर कुछ समय के लिए फिर से कब्जा कर लिया था (जब फारसियों ने सीरिया और फिलिस्तीन पर आक्रमण किया था), लेकिन उनके पास मंदिर स्थल को साफ करने का समय नहीं था, क्योंकि रूमियों (बाइज़ेंटाइन्स) ने शहर पर दोबारा कब्जा कर लिया था। टेंपल माउंट की सफाई और नमाज़ की शुरुआत उमर ने नबातियों को सख़रा (चट्टान) पर जमा कचरा साफ करने का आदेश दिया। तीन बार भारी बारिश होने के बाद चट्टान साफ हुई, और उमर ने वहां नमाज़ की शुरुआत की। आज भी यह स्थान कुब्बत अल-सख़रा (डोम ऑफ द रॉक) के नाम से जाना जाता है।

  • यहूदियों के लिए राहत

लेक्सिकोग्राफर डेविड बेन अब्राहम अल-फ़ासी (1026 से पहले मृत्यु) के अनुसार, फिलिस्तीन की मुस्लिम विजय ने देश के यहूदी नागरिकों को राहत दी, क्योंकि बाइज़ेंटाइन शासन के दौरान उन्हें टेंपल माउंट पर प्रार्थना करने से रोका जाता था।[10]

उमर ने अबू बकर को क़ुरआन को एक किताब के रूप में संकलित करने की सलाह दी

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उमर ने अबू बकर को क़ुरआन को एक किताब के रूप में संकलित करने की सलाह दी, जब यमामा की लड़ाई में क़ुरआन के 300 हफ़ाज़ (क़ुरआन याद करने वालों) की मृत्यु हो गई।[11]

टिप्पणी

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प्रसिद्ध लेखक माइकल एच. हार्ट ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक दि हन्ड्रेड The 100: A Ranking of the Most Influential Persons in History, (सौ दुनिया के सबसे प्रभावित करने वाले लोगो की सुचि में 52वाँ स्थान दिया) में हजरत उमर को शामिल किया है। हजरत उमर के लिए पैगंबर मुहम्मद ने कहा की अगर मेरे बाद कोई पैगंबर होता तो वो उमर होते।

यह भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. ibn Sa'ad, 3/ 281
  2. Ibn Hajar al-Asqalani, Ahmad ibn Ali. Lisan Ul-Mizan: *Umar bin al-Khattab al-Adiyy.
  3. https://www.britannica.com/biography/Umar-I
  4. "Umar Ibn Al-Khattab : His Life and Times, Volume 1". archive.org. Archived from the original on 7 अप्रैल 2016. Retrieved 8 मई 2020.
  5. Haykal, 1944. Chapter 1.
  6. "Tarikh Ibn-e-Kaseer (Al Bidayah Wa Nihayah)". Archive.
  7. The History of al-Tabari. State University of New York Press. 1990.
  8. The Cambridge History of Islam, ed. P.M. Holt, Ann K.S. Lambton, and Bernard Lewis, Cambridge, 1970
  9. Essid, Yassine (1995). A Critique of the Origins of Islamic Economic Thought. Brill Publishers. pp. 24, 67. ISBN 978-90-04-10079-4.
  10. Al-Fasi, D. (1936). Solomon L. Skoss (ed.). The Hebrew-Arabic Dictionary of the Bible, Known as 'Kitāb Jāmiʿ al-Alfāẓ' (Agron) (in हिब्रू). Vol. 1. Yale University Press. p. xxxix – xl (Introduction). OCLC 745093227.
  11. "Hadith – Book of Judgments (Ahkaam) – Sahih al-Bukhari – Sayings and Teachings of Prophet Muhammad (صلى الله عليه و سلم)". Sunnah.com.

बाहरी कड़ियाँ

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